हजरत अबूमुसा अरअरी राजियाल्लाहू हाला अन्हु रसूले खुदा सल्लल्लाहु तआला अलेहू व वस्सलाम की से रिवायत करते है की आप ने (दोजख की गहराई बायांन करते हुए) फ़रमाया, अगर एक पत्थर ज़हन्नुम में डाला जाए तो दोजख की तह में पहुँचने से पहले सतर साल तक गिरता चला जाएगा |
और हजरत अबू हूरेर रजी का बयाँ है की हम रसूल खुद सल्लल्लाहु तआला वसल्लम की बरकती खिदमत में बेठे हुए थे की हमने किसी चीज के गिरने की आवाज़ सूनी | रसूल खुदा सल्लल्लाहु आलेही व सल्लम ने फ़रमाया क्या तुम जानते हो की यह (आवाज) क्या है ? हमने अर्ज किया, अल्लाह और उसका रसूल ही खूब जानते है | आपने फ़रमाया यह एक पत्थर है , जिसको खुदा ने ज़हन्नुम के मूह पर (तह में गिरने के लिए) छोड़ा था और वह सतर साल तक गिरते-गिरते अब दोजख की तह में पहुंचा है | यह उसके गिरने की आवाज़ है |
हुजुर सल्लालाहू अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया की दोज़ख को चार दीवारें घेरे हुए है जिनमें हर दीवार की चौड़ाई चालीस साल चलने की दूरी है। दोज़ख के सात दरवाज़े हैं जिनमे से एक उनके लिए है जो उम्मते मुहम्मदिया पर तलवार उठाये हुए है। अल्लाह के रसूल सल्लला हुअलैहिवसल्लम ने फ़रमाया कि दोज़ख को एक हज़ार साल तक धोंका गया तो उसकी आग लाल हो गयी, फिर एक हज़ार साल और धोंका गया तो उसकी आग सफेद हो गयी, फिर एक हज़ार साल धोंका गया तो उसकी आग काली हो गयी, चुनांचे अब उसकी आग काली है। एक रिवायत में है कि उसकी लपट में रौशनी नहीं है। यानी हमेशा अँधेरा रहता है। और फ़रमाया कि दुनियावी आग दोज़ख कि आग का सत्तरवां हिस्सा है, यानी दोज़ख कि आग दुनियावी आग से सत्तर गुना ज्यादा गर्म है। अगर किसी दोज़खी को दुनिया कि आग में छोड़ दिया जाए तो उसे नींद आ जाएगी। क्योंकि दुनियावी आग दोज़ख कि आग के मुकाबले ठंडी है इसीलिए उसे उसमे ज्यादा आराम मिलेगा।
दोज़ख ने अपने रब के दरबार में शिकायत की कि मेरी तेज़ी बहुत बढ़ गयी है यहाँ तक कि मेरे कुछ हिस्से दुसरे हिस्सों को खाए जाते हैं। इसलिए मुझे इज़ाज़त दी जाए कि किसी तरह अपनी गर्मी हलकी कर सकूँ। चुनांचे अल्लाह तआला ने उसको दो बार सांस लेने कि इज़ाज़त दी। एक सांस सर्दी के मौसम में और एक साँस गर्मी के मौसम में इसलिए गर्मी जो हम महसूस करते हैं दोज़ख कि लू का असर है जो साँस के साथ बहार आती है। और सख्त सर्दी जो महसूस करते है वो साँस अन्दर खेंचने का असर है। यानी दुनिया कि तमाम गर्मी सांस के साथ खेंच लेती है। एक रिवायत में आता है कि हर रोज़ दोपहर को दोज़ख को देह्काया जाता है। एक बयान में आता है कि जिन्नात को आग का अज़ाब नहीं दिया जाएगा क्योंकि आग तो उनकी तबियत में है और उनको आग से ही बनाया गया है, इसलिए उनके लिए बेहद ठंडक का अज़ाब दिया जाएगा। जिन्नात दुनिया में भी सर्दी से बेहद घबराते हैं। सर्दी में बाद हवास होकर घुमते हैं। फ़रमाया कि पानी में न शैतान आ सकता है न ही जिन्न जा सकता है। अगर कोई पानी में उनको दाल दे तो बुझ कर फनाह हो जायेंगे। यह भी फ़रमाया कि कातिलों को भी शैतान के साथ ठंडक का अज़ाब दिया जाएगा। यहाँ सबक हासिल करने वाली बात है कि दुनिया में इंसान मामूली गर्मी और सर्दी बर्दास्त नहीं कर सकता उसमे भी उसको कूलर ऐ सी चाहिए तो दोज़ख कि आग को कैसे बर्दाश्त कर पायेगा। दुनिया में करोड़ों इंसान ऐसे हैं जो मामूली सर्दी गर्मी से बचने का अह्तमाम करते हैं मगर दोज़ख का उन्हें ख्याल ही नहीं।
कुराने करीम में फरमाया गया है कि - ऐ ईमान वालों! अपने आप को और अपने घर वालों को दोज़ख कि आग से बचाओ जिनका ईंधन इंसान और पत्थर बनने वाले हैं। पत्थर के बारे में फ़रमाया गया कि जो दोज़ख का ईंधन हैं वो किब्रित यानी गंधक के पत्थर हैं जो खुदा ने करीब वाले आसमान में उस दिन पैदा फरमाए थे जिस दिन आसमान और ज़मीन पैदा फरमाए थे। यह पत्थर कुफ्फार के अज़ाब के लिए तैयार किये गए थे। इन पत्थरों के अलावा मुशरिकों कि वह मूर्तियाँ भी दोज़ख में होंगी जिनकी वह पूजा किया करता था।
दोज़ख के सात तबके हैं जिनमें तरह तरह के अज़ाब है। जो जिस अज़ाब का हक़दार होगा उसी में दाखिल होगा। ज़ेहन्नुम के कई तबके हैं। बुजुर्गों ने इन तबकों के नाम और तफसीर कुछ इस तरह बयान की है कि सबसे नीचे का तबका मुनाफिकों, फ़िरौन और उसके मददगारों का जिसका नाम "हाविया" है और दूसरा तबका जो "हाविया" के ऊपर है मुशरिकों के लिए है जिसका नाम "ज़हीम" है। फिर तीसरा तबका "सकर" जो बे दीन फ़िर्का साइबीन के लिए है। चौथा तबका "नतय" है वह इब्लीस और उसके ताबेदारों के लिए है। और पांचवां तबका यहूद के लिए है जिसका नाम है "हुत्मा"। छठा तबका "सईर" ईसाइयों के लिए है और सातवां तबका "ज़हन्नुम" है जो गुनाहगार मुसलमानों के लिए है उसी पर पुल सिरात कायम होगी और गो सब तबकों के लिए लफ्ज़ ज़हन्नुम ही आता है। दोज़ख के हर दरवाज़े कि दूरी सात सौ साल की है।
अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया कि क़यामत के दिन दोज़ख से एक गर्दन निकलेगी जिसकी दो आँखें, दो कान, और एक जुबान होगी, वह कहेगी मैं तीन शख्सों पर मुसल्लत की गयी हूँ - , एक हर सरकश जिद्दी पर, दूसरा हर उस इंसान पर जिसने अल्लाह के साथ दूसरा माबूद ठहराया, तीसरा तस्वीर बनाने वाले पर।
और हजरत अबू हूरेर रजी का बयाँ है की हम रसूल खुद सल्लल्लाहु तआला वसल्लम की बरकती खिदमत में बेठे हुए थे की हमने किसी चीज के गिरने की आवाज़ सूनी | रसूल खुदा सल्लल्लाहु आलेही व सल्लम ने फ़रमाया क्या तुम जानते हो की यह (आवाज) क्या है ? हमने अर्ज किया, अल्लाह और उसका रसूल ही खूब जानते है | आपने फ़रमाया यह एक पत्थर है , जिसको खुदा ने ज़हन्नुम के मूह पर (तह में गिरने के लिए) छोड़ा था और वह सतर साल तक गिरते-गिरते अब दोजख की तह में पहुंचा है | यह उसके गिरने की आवाज़ है |
हुजुर सल्लालाहू अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया की दोज़ख को चार दीवारें घेरे हुए है जिनमें हर दीवार की चौड़ाई चालीस साल चलने की दूरी है। दोज़ख के सात दरवाज़े हैं जिनमे से एक उनके लिए है जो उम्मते मुहम्मदिया पर तलवार उठाये हुए है। अल्लाह के रसूल सल्लला हुअलैहिवसल्लम ने फ़रमाया कि दोज़ख को एक हज़ार साल तक धोंका गया तो उसकी आग लाल हो गयी, फिर एक हज़ार साल और धोंका गया तो उसकी आग सफेद हो गयी, फिर एक हज़ार साल धोंका गया तो उसकी आग काली हो गयी, चुनांचे अब उसकी आग काली है। एक रिवायत में है कि उसकी लपट में रौशनी नहीं है। यानी हमेशा अँधेरा रहता है। और फ़रमाया कि दुनियावी आग दोज़ख कि आग का सत्तरवां हिस्सा है, यानी दोज़ख कि आग दुनियावी आग से सत्तर गुना ज्यादा गर्म है। अगर किसी दोज़खी को दुनिया कि आग में छोड़ दिया जाए तो उसे नींद आ जाएगी। क्योंकि दुनियावी आग दोज़ख कि आग के मुकाबले ठंडी है इसीलिए उसे उसमे ज्यादा आराम मिलेगा।
दोज़ख ने अपने रब के दरबार में शिकायत की कि मेरी तेज़ी बहुत बढ़ गयी है यहाँ तक कि मेरे कुछ हिस्से दुसरे हिस्सों को खाए जाते हैं। इसलिए मुझे इज़ाज़त दी जाए कि किसी तरह अपनी गर्मी हलकी कर सकूँ। चुनांचे अल्लाह तआला ने उसको दो बार सांस लेने कि इज़ाज़त दी। एक सांस सर्दी के मौसम में और एक साँस गर्मी के मौसम में इसलिए गर्मी जो हम महसूस करते हैं दोज़ख कि लू का असर है जो साँस के साथ बहार आती है। और सख्त सर्दी जो महसूस करते है वो साँस अन्दर खेंचने का असर है। यानी दुनिया कि तमाम गर्मी सांस के साथ खेंच लेती है। एक रिवायत में आता है कि हर रोज़ दोपहर को दोज़ख को देह्काया जाता है। एक बयान में आता है कि जिन्नात को आग का अज़ाब नहीं दिया जाएगा क्योंकि आग तो उनकी तबियत में है और उनको आग से ही बनाया गया है, इसलिए उनके लिए बेहद ठंडक का अज़ाब दिया जाएगा। जिन्नात दुनिया में भी सर्दी से बेहद घबराते हैं। सर्दी में बाद हवास होकर घुमते हैं। फ़रमाया कि पानी में न शैतान आ सकता है न ही जिन्न जा सकता है। अगर कोई पानी में उनको दाल दे तो बुझ कर फनाह हो जायेंगे। यह भी फ़रमाया कि कातिलों को भी शैतान के साथ ठंडक का अज़ाब दिया जाएगा। यहाँ सबक हासिल करने वाली बात है कि दुनिया में इंसान मामूली गर्मी और सर्दी बर्दास्त नहीं कर सकता उसमे भी उसको कूलर ऐ सी चाहिए तो दोज़ख कि आग को कैसे बर्दाश्त कर पायेगा। दुनिया में करोड़ों इंसान ऐसे हैं जो मामूली सर्दी गर्मी से बचने का अह्तमाम करते हैं मगर दोज़ख का उन्हें ख्याल ही नहीं।
कुराने करीम में फरमाया गया है कि - ऐ ईमान वालों! अपने आप को और अपने घर वालों को दोज़ख कि आग से बचाओ जिनका ईंधन इंसान और पत्थर बनने वाले हैं। पत्थर के बारे में फ़रमाया गया कि जो दोज़ख का ईंधन हैं वो किब्रित यानी गंधक के पत्थर हैं जो खुदा ने करीब वाले आसमान में उस दिन पैदा फरमाए थे जिस दिन आसमान और ज़मीन पैदा फरमाए थे। यह पत्थर कुफ्फार के अज़ाब के लिए तैयार किये गए थे। इन पत्थरों के अलावा मुशरिकों कि वह मूर्तियाँ भी दोज़ख में होंगी जिनकी वह पूजा किया करता था।
दोज़ख के सात तबके हैं जिनमें तरह तरह के अज़ाब है। जो जिस अज़ाब का हक़दार होगा उसी में दाखिल होगा। ज़ेहन्नुम के कई तबके हैं। बुजुर्गों ने इन तबकों के नाम और तफसीर कुछ इस तरह बयान की है कि सबसे नीचे का तबका मुनाफिकों, फ़िरौन और उसके मददगारों का जिसका नाम "हाविया" है और दूसरा तबका जो "हाविया" के ऊपर है मुशरिकों के लिए है जिसका नाम "ज़हीम" है। फिर तीसरा तबका "सकर" जो बे दीन फ़िर्का साइबीन के लिए है। चौथा तबका "नतय" है वह इब्लीस और उसके ताबेदारों के लिए है। और पांचवां तबका यहूद के लिए है जिसका नाम है "हुत्मा"। छठा तबका "सईर" ईसाइयों के लिए है और सातवां तबका "ज़हन्नुम" है जो गुनाहगार मुसलमानों के लिए है उसी पर पुल सिरात कायम होगी और गो सब तबकों के लिए लफ्ज़ ज़हन्नुम ही आता है। दोज़ख के हर दरवाज़े कि दूरी सात सौ साल की है।
अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया कि क़यामत के दिन दोज़ख से एक गर्दन निकलेगी जिसकी दो आँखें, दो कान, और एक जुबान होगी, वह कहेगी मैं तीन शख्सों पर मुसल्लत की गयी हूँ - , एक हर सरकश जिद्दी पर, दूसरा हर उस इंसान पर जिसने अल्लाह के साथ दूसरा माबूद ठहराया, तीसरा तस्वीर बनाने वाले पर।
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